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कोरोना - देवताओं को ध्वस्त करने का ko शस्त्र कोरोना - देवताओं को ध्वस्त करने का शस्त्र 3500 साल पहिले मूसा के परमेश्वर ने दस महामारियों से मिस्र देश के सभी प्रमुख देवी देवताओं को ध्वस्त करके अपनी महानता को पुन :   स्थापित किया था। सर्प देवता:   फिरौन के सिर का सोने का मुकुट एक नाग सांप के आकार में बना था जो शैतान का प्रतीक होकर राजा पर प्रभुता करता था। मूसा के सांप ने फिरौन के जादूगरों के सभी सांपों को निगलकर मूसा के परमेश्वर की श्रेष्ठता साबित की। नदी देवता:   नील नदी जो आज हमारी गंगा की तरह पूजनीय थी। मिस्रियों का बिश्वास था कि उसमे पवित्र स्नान से आपको सभी पापों से मुक्ति मिल सकती है। हारून ने एक डंडा मारा तो सारे जल जंतु और मछलियाँ जिसे वे देवता मानते थे, मरकर उस नील नदी को बदबूदार खून के समान लाल नदी में बदल दिया। इससे ये साबित हो गया कि मुक्ति नदी में स्नान करने से नहीं लेकिन सच्चे परमेश्वर पर बिश्वास करने से प्राप्त होती है। सूर्य देवता:   तुतनखामुन नाम के प्रसिद्ध फिरौन बादशाह सूर्य देवता का निष्ठावान पुजा
'हे थियुफिलुस, मैं ने पहिली पुस्तिका उन सब बातों के विषय में लिखी, जो यीशु ने आरम्भ में किया और करता और सिखाता रहा। उस दिन तक जब वह उन प्रेरितों को जिन्हें उस ने चुना था, पवित्र आत्मा के द्वारा आज्ञा देकर ऊपर उठाया न गया। और उस ने दुख उठाने के बाद बहुत से पड़े प्रमाणों से अपने आप को उन्हें जीवित दिखाया, और चालीस दिन तक वह उन्हें दिखाई देता रहा: और परमेश्वर के राज्य की बातें करता रहा'' (प्रेरितों १:१−३) यीशु मरकर जीवित हुये। इसमें कोई संदेह नहीं। उनकी कब्र पर रोमन सरकार की मुहर लगी थी। रोमी सैनिको ने जी जान लगाकर उसकी रखवाली की थी। लेकिन ईस्टर की सुबह परमेश्वर ने उस विशाल शिला को हटा दिया और उस रोमी मुहर को भी तोड दिया। और यीशु उस भोर के प्रकाश में कब्र से बाहर आ गये। खाली पडी कब्र ने स्वयं घोषणा कर दी कि यीशु मरकर जीवित हो चुके हैं! यीशु कब्र से जीवित बाहर आ गये। इसमें कोई संदेह नहीं। उनके जीवित होने के उपरांत सैकडों लोगों ने उन्हें देखा। प्रेरित पौलुस ने कहा था, ''फिर पांच सौ से अधिक भाइयों को एक साथ दिखाई दिया........फिर याकूब को दिखाई दिया तब सब प्रेरितो
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Best life परमेश्वर का इच्छा मनुष्यों के लिए सारे मानव जाति के लिए परमेश्वर का इच्छा इसलिये हे भाइयो, मैं तुम से परमेश्वर की दया स्मरण दिला कर बिनती करता हूं, कि अपने शरीरों को जीवित, और पवित्र, और परमेश्वर को भावता हुआ बलिदान करके चढ़ाओ: यही तुम्हारी आत्मिक सेवा है। 2 और इस संसार के सदृश न बनो; परन्तु तुम्हारी बुद्धि के नए हो जाने से तुम्हारा चाल-चलन भी बदलता जाए, जिस से तुम परमेश्वर की भली, और भावती, और सिद्ध इच्छा अनुभव से मालूम करते रहो। रोमियों 12: 1-2 का लक्ष्य है कि सम्पूर्ण जीवन ‘‘आत्मिक आराधना’’ बन जावे। पद 1: ‘‘अपने शरीरों को जीवित, और पवित्र, और परमेश्वर को भावता हुआ बलिदान करके चढ़ाओ: यही तुम्हारी आत्मिक सेवा (सही अनुवाद- आराधना) है। परमेश्वर की दृष्टि में सभी मानव जिन्दगियों का लक्ष्य ये है कि मसीह को उतना ही मूल्यवान् दिखाया जावे जितना कि ‘वह’ है। आराधना का अर्थ है, हमारे मन और हृदयों और शरीरों को, परमेश्वर के मूल्य को, और जो कुछ ‘वह’ यीशु में हमारे लिए है, अभिव्यक्त करने के लिए उपयोग करना। जीने का एक तर