'हे थियुफिलुस, मैं ने पहिली पुस्तिका उन सब बातों के विषय में लिखी, जो यीशु ने आरम्भ में किया और करता और सिखाता रहा। उस दिन तक जब वह उन प्रेरितों को जिन्हें उस ने चुना था, पवित्र आत्मा के द्वारा आज्ञा देकर ऊपर उठाया न गया। और उस ने दुख उठाने के बाद बहुत से पड़े प्रमाणों से अपने आप को उन्हें जीवित दिखाया, और चालीस दिन तक वह उन्हें दिखाई देता रहा: और परमेश्वर के राज्य की बातें करता रहा'' (प्रेरितों १:१−३)

यीशु मरकर जीवित हुये। इसमें कोई संदेह नहीं। उनकी कब्र पर रोमन सरकार की मुहर लगी थी। रोमी सैनिको ने जी जान लगाकर उसकी रखवाली की थी। लेकिन ईस्टर की सुबह परमेश्वर ने उस विशाल शिला को हटा दिया और उस रोमी मुहर को भी तोड दिया। और यीशु उस भोर के प्रकाश में कब्र से बाहर आ गये। खाली पडी कब्र ने स्वयं घोषणा कर दी कि यीशु मरकर जीवित हो चुके हैं!
यीशु कब्र से जीवित बाहर आ गये। इसमें कोई संदेह नहीं। उनके जीवित होने के उपरांत सैकडों लोगों ने उन्हें देखा। प्रेरित पौलुस ने कहा था, ''फिर पांच सौ से अधिक भाइयों को एक साथ दिखाई दिया........फिर याकूब को दिखाई दिया तब सब प्रेरितों को दिखाई दिया। और सब के बाद मुझ को भी दिखाई दिया, जो मानो अधूरे दिनों का जन्मा हूं'' (१कुरूंथियों १५:६−८) ''और उस ने दुख उठाने के बाद बहुत से पड़े प्रमाणों से अपने आप को उन्हें जीवित दिखाया, और चालीस दिन तक वह उन्हें दिखाई देता रहा और परमेश्वर के राज्य की बातें करता रहा'' (प्रेरितों १:३)
डॉ जोन आर राइस ने कहा,
सोचिये उन सैकडो लोगो की कितनी जर्बदस्त गवाही रही होगी जिन्होंने यीशु को पुर्नस्थान के बाद देखा होगा और किसी किसी ने तो उन (चालीस दिनों में) को बार बार देखा होगा...... सैकडो लोग की चश्मदीद गवाही इस बात पर एकमत थी कि यीशु मरकर जीवित हुये हैं। एक भी व्यक्ति ऐसा कहता हुआ प्रगट नहीं हुआ कि हमने (ईस्टर) के पश्चात उनके मुरदा शरीर को देखा है और न ही कोई उनके दिखाई देने के प्रमाणों के विरूद्व कुछ कहने को खडा हुआ। चश्मदीद गवाहों ने कहा कि वे यीशु के संपर्क में रहे, उन्हें छुआ, उनके हाथ और पैरों में कीलों के निशान को स्पर्श किया, उन्हें खाते हुये देखा और उनके साथ चालीस दिन तक संगति की...... ये प्रमाण इतने सशक्त थे कि केवल वे जो उन पर विश्वास करना नहीं चाहते थे और उन प्रमाणों की प्रामाणिकता को परखना नहीं चाहते थे उन्होंने ही इस सत्य को अस्वीकार किया। इसमें जरा आश्चर्य नहीं जब बाइबल स्वयं कहती है ''यीशु ने दुख उठाने (मरने) के बाद बहुत से अचूक प्रमाणों से अपने आप को उन्हें जीवित दिखाया'' प्रेरितों १:३ 
खाली कब्र और सैकडों आंखों देखी गवाहियां, इस बात का पक्का सबूत है कि मसीह मरकर जीवित हुये। मसीह के चेलों का परिवर्तित जीवन इससे भी बढकर सशक्त गवाही बना। जीवित हुये मसीह को देखने के पश्चात इन शिष्यों के जीवन पूर्णत परिवर्तित हो गये। इसके पहले वे कायर थे और एक तालेयुक्त कमरे में डर के मारे बंद रहे। पर जब उन्होंने जीवित मसीह को देखा, वे निडर होकर प्रचार करने लगे कि यीशु जीवित हुये हैं − वह मुरदों में से जी उठे हैं! प्रचार करने की कीमत उन्हें अपने जीवन के द्वारा भी चुकाना पडी!
पतरस − अधमरा होने तक पीटा गया और फिर क्रूस पर उल्टा टांग दिया गया। 
अंद्रियास − एक्स आकार के क्रूस पर टांगा गया। 
जब्दी के पुत्र याकूब − का सिर कलम कर दिया गया।
यूहन्ना − तेल के कडाह में फेंक दिया गया था और उसे पतमुस टापू पर निकाला दे दिया, जहां वह घावयुक्त अवस्था में जीवन के लिये संघर्ष करता रहा 
फिलिप − को पीटा गया और क्रूस पर कीलें ठोककर चढा दिया गया।
बरतुल्मै − की खाल निकाल ली गयी और उसे क्रूस पर चढा दिया गया। 
मत्ती − का सिर कलम कर दिया गया।
यहूदा जो मसीह का सौतेला भाई था − उन्हें मंदिर के शिखर से गिरा दिया गया, और दम तोडने तक पीटते रहे।
तददुस − को तीरों से मारा गया। 
मरकुस − को घोडों के समूह द्वारा घसीट कर मारा गया। 
पौलुस − का सिर कलम कर दिया गया। 
लूका − को जैतून के पेड पर फांसी दे दी गयी।
टामस − को भालों से मारा गया और एक तंदूर में फेंक दिया गया।

इन सभी लोगों ने भयानक दुख उठाया। सभी शिष्य जिसमें यूहन्ना भी था भयानक मौत मारे गये। ऐसा उनके साथ क्यों हुआ? ऐसा इसलिये हुआ क्योंकि वे कहते थे कि उन्होंने यीशु को मरकर जीवित हुये देखा था! न देखी गयी चीज के लिये मनुष्य दुख नहीं उठायेगा, न मारा जायेगा! इन लोगों ने मसीह को देखा था ''और उस ने दुख उठाने (मरने) के बाद बहुत से प्रमाणों से अपने आप को (उन्हें) जीवित दिखाया और चालीस दिन (तक) वह उन्हें दिखाई देता रहा और परमेश्वर के राज्य की बातें करता रहा'' (प्रेरितों १:३) उस घोर वृद्धावस्था में उनके शरीरों को उबलते तेल में भयानक रूप से फेंक दिया गया, शिष्य यूहन्ना सच की गवाही देते हैं, ''उस जीवन के वचन के विषय में जो आदि से था, जिसे हम ने सुना, और जिसे अपनी आंखों से देखा, वरन जिसे हम ने ध्यान से देखा; और हाथों से छूआ'' (१ यूहन्ना १:१) मैं कहता हूं हम इन मनुष्यों पर विश्वास कर सकते हैं! उन्होंने घोर दुख उठाया होगा और मसीह के जीवित होने का प्रचार करने के कारण मारे गये। न देखी गयी चीज के लिये मनुष्य दुख नहीं उठायेगा, न मारा जायेगा! इन मनुष्यों ने मसीह को देखा था और कब्र से जीवित होने के बाद छुआ था! इसलिये भयानक यातना और मौत भी उन्हें यह प्रचार करने से नहीं रोक पायी, ''कि मसीह मरकर जीवित हुये!''
टामस ने उन्हें कमरे मे छुआ था, 
उन्हें अपना स्वामी और प्रभु कहा था, 
उनके घावों के छेद में उंगली डाली थी
जो तलवार और कीलों से हुये थे।
वह मरकर पुर्नजीवित हुए!
वह मरकर पुर्नजीवित हुए!
उन्होंने मौत के मजबूत नीरस शिकंजे को शिकस्त दे दी −
वह जो मर गये थे वह फिर से जीवित हो गये!
   (''फिर से जीवित'' पाउल राडेर, १८७८−१९३८)
अब शिष्य पुर्नजीवित मसीह से अंतिम बार मिले। मसीह ने उन्हें यरूशलेम में ठहरे रहने को कहा जब तक ''पवित्र आत्मा से बपतिस्मा'' न मिल जाये। यीशु ने कहा,
''परन्तु जब पवित्र आत्मा तुम पर आएगा तब तुम सामर्थ पाओगे और यरूशलेम और सारे यहूदिया और सामरिया में, और पृथ्वी की छोर तक मेरे गवाह होगे'' (प्रेरितों १:८)


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